वर्तमान
पूर्णिया बिहार के उत्तर – पूर्वी भाग में बसा एक जिला है जिस की स्थापना 14 फरवरी 1770 को East India Company द्वारा किया गया था। आज के समय में इसे कोसी-सीमांचल के नाम से भी जाना जाता है। 1771 में कई यूरोपीय लोग रामबाग में बस गए। रामबाग में British सेना की छवानी भी थी। रामबाग और आस पास के इलाके में कुछ घर, चर्च और कब्रिस्तान आज भी मौजूद हैं जो British कालीन हैं।
आज 14 फरवरी 2019 को पूर्णिया जिला 250वें वर्ष में प्रवेश कर गया है। पहले के बनिस्पत आज पुर्णिया ने काफी तरक्की कर ली है। छोटे और मँझोले mall/supermarkets, होटलों, और अच्छे-अच्छे स्कूलों की वजह से भी पूर्णिया को आज पूरे भारत में एक अच्छा मुकाम हासिल है।
सरकारी Engineering और Medical college, Polytechnic, Agriculture College के अलावे और भी अच्छे private शिक्षण संस्थान यहाँ मौजूद हैं। वर्तमान पूर्णिया में Purnia University भी 18 मार्च 2018 से अस्तित्व में आ गया है जिनके अंतर्गत आने वाले colleges अच्छी और उच्च कोटि की शिक्षा दे रहे हैं। सोने पे सुहागा वाली बात ये है कि पूर्णिया एक Medical hub के रूप में विकसित हो रहा है। अच्छी और चौड़ी सड़कें, सड़कों पर रौशनी इसमें चार चाँद लागते हैं। लोगों के रहन सहन में भी विगत कुछ वर्षों से काफी बदलाव देखा जा सकता है।
पूर्व में पूर्णिया का भोगोलिक क्षेत्र बहुत विशाल था। वर्तमान भागलपुर के साथ – साथ मालदा और दार्जिलिंग जिला का भी कुछ हिस्सा पूर्णिया क्षेत्र में आता था जो बाद में British सरकार द्वारा सीमांकन कर अलग कर दिया गया था। फिर भारत की आजादी के बाद कटिहार को 1976 में, तथा अररिया और किशनगंज को 1990 में पूर्णिया से अलग कर 3 नए जिले बना दिये गए।
वर्तमान में इसके उत्तर में अररिया और किशनगंज जिला, दक्षिण में भागलपुर और कटिहार जिला, पूर्व में पश्चिम बंगाल का दिनाजपुर जिला तथा पश्चिम में मधेपुरा जिला है। यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध और क्रिश्चियन सभी धर्मों को मनाने वाले लोग रहते हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पूर्णिया में 14 अगस्त 1947 की आधी रात को अर्थात, 15 अगस्त की रात 12 बजकर 1 मिनट पर तिरंगा झण्डा फहराया गया था, और यह परंपरा 71 वर्षों से लगातार जारी है। पूर्णिया शहर के भट्ठा बाजार स्थित झण्डा चौक पर रष्ट्र्गान और भारत माता की जय के नारे के साथ झण्डा फहराया जाता है। ऐसा भारत में सिर्फ दो ही जगह होता है। पहला पूर्णिया और दूसरा बाघा बोर्डर है।
ऐसा भी कहा जाता है कि पूर्णिया क्षेत्र प्राचीन काल में नेपाल का हिस्सा हुआ करता था और ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा इसे कुछ terms & conditions के तहत भारत मेँ मिलाया गया था क्यूंकि यहाँ कि जलवायु और मौसम अंग्रेजों को रहने के अनुकूल लगा था। हालांकि इतिहास में इसका कोई विस्तृत वर्णन नहीं मिला है। वैसे महाभारत काल के साक्ष्यों से ये बात सिद्ध भी होती है कि पूर्णिया नेपाल का ही भाग था।
इतिहास में पूर्णिया जिला के नाम की उत्पत्ति के कई मत मिले हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार पूर्णिया प्रांत का नाम इसके भौगोलिक और धार्मिक स्थिति को देख कर रखा गया है। प्राचीन में यह प्रांत पूर्ण रूप से जंगलों से भरा होता था जिसे तीन नदियों गंगा, कोसी और महानंदा ने चारों तरफ से घेर रखा था। और ये पूरी तरह से जंगलों से भरा था। संस्कृत में पूरा को पूर्ण और जंगल को “अरण्य” कहते हैं। अर्थात, पूरा जंगल का संस्कृत शब्द “पूर्ण – अरण्य” होता है। पूर्ण-अरण्य की वजह से यह “पुरनियाँ” के नाम से जाना जाता था। बाद में पुरनियाँ का अपभ्रंश “पूर्णिया” नाम इस्तेमाल होने लग गया। माता पूरन देवी का मंदिर भी अति-प्राचीन है जो पुर्णिया शहर से लगभग 5 किमी की दूरी पर है। यह मंदिर लगभग 600 वर्ष पुराना बताया जाता है।
हालांकि कुछ इतिहासकार ये भी कहते हैं कि इसके नाम की उत्पत्ति “Purain” अर्थात “कमल (Lotus)” से हुई है; क्यूंकी कमल कोसी और महानंदा की नदियों में उगाया जाता था। और इसका नाम “पुरनिया” था जो कि बाद में “पूर्णियाँ” हो गया।
यह वही पूर्णिया जिला है जिसे कभी काला-पानी के नाम से भी जाना जाता था। इसका मुख्य कारण था तीनों नदियों द्वारा लाया गया गाद और हिमालय के जंगलों के बीच से निकालने वाला काला पानी जो यहाँ के जंगलों में आकार बस जाता था।
क्या आप जानते हैं कि भारत में एक पाकिस्तान भी है? शायद नहीं जानते होंगे। तो आपको ये बता दें कि पूर्णिया जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी की दूरी पर एक गाँव है जिसका नाम पाकिस्तान है।